महाप्रभु चैतन्य वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं।
चैतन्य चरितामृत के अनुसार महाप्रभु चैतन्य का जन्म फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा कोे संध्याकाल समय में सिंह लग्न में चंद्र ग्रहण के समय पश्चिम बंगाल की नदिया में 1486 को हुआ था नादिया को अब मायापुर के नाम से भी जाना जाता है।
बाल्यावस्था में महाप्रभु चैतन्य का नाम विशंभर था पर सभी उन्हें निमाई कहकर पुकारते थे और गौरवर्ण होने के कारन लोग उन्हें "गोरांग" "गौरहरी" "गौरसुंदर" यादी नाम लोग उन्हें पुकारते थे महाप्रभु चैतन्य के पिताजी का नाम जगन्नाथ मिश्र एवं माता जी का नाम शचिदेवी था।
बाल्यावस्था में महाप्रभु चैतन्य का नाम विशंभर था पर सभी उन्हें निमाई कहकर पुकारते थे और गौरवर्ण होने के कारन लोग उन्हें "गोरांग" "गौरहरी" "गौरसुंदर" यादी नाम लोग उन्हें पुकारते थे महाप्रभु चैतन्य के पिताजी का नाम जगन्नाथ मिश्र एवं माता जी का नाम शचिदेवी था।
महाप्रभु चैतन्य बचपन से ही आनके सुलक्षण प्रतिभा संपन्न थे साथ ही अत्यंत सरल सुंदर एवं भावुक भी थे बाल्यावस्था से ही "गोविंद चिंतन कृष्ण नाम स्मरण स्तुतिगान क्या करते थे" 15 साल की उम्र में चैतन्य महाप्रभु की विवाह "लक्ष्मीप्रिया" नामक सुकन्या के साथ संपन्न हुआ पर कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो गई संसार चलाने की कारन उनका दूसरा विवाह नदीया के राज पंडित सनातन जी की पुत्री "विष्णुप्रिया" के साथ संपन्न हुआ।
सन 1501में जब गैरांग अपने पिता का श्राद्ध करने की लीए गया गए थे तब वहां इनकी भेंट "ईश्वरपुरी" नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से "कृष्ण नाम की कीर्तन भजन संकीर्तन करने को कहा" उसी समय से महाप्रभु चैतन्य की जीवन बदल गया उनकी मन सदा कृष्ण नाम भजन कीर्तन संकीर्तन लीन हो गया आैर हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु एवं अद्वैताचार्य महाराज ने महाप्रभु चैतन्य की शिष्य बने इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की।
chayitanya mahaprabhu |
।।हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे।
हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे।।
महाप्रभु चैतन्य ने भारत की अनेक स्थान भ्रमण कीए और कृष्ण का नाम भजन संकीर्तन के प्रचार-प्रसार किए कुछ दिन पुरुषोत्तम क्षेत्र नीलाचंल में रहकर वहां लोगों को कृष्ण नाम की भजन कीर्तन से मोहित किए अनेक शिष्य भी बनाए।
"काशी' वृंदावन'हरिद्वार' आधुनिक कर्नाटक तमिलनाडु ' हरिद्वार मथुरा" आदि अनेक पवित्र तीर्थस्थल भ्रमण कीए और कृष्ण नाम भजन संकीर्तन से लोगों को मोहित किए
और अंतिम समय में उन्होंने जगन्नाथ धाम पुरी में निवास किया और 1533 में रथयात्रा के दिन 47 वर्ष की आयु में महाप्रभु चैतन्य ने परम कृष्ण धाम को प्रस्थान किए...