अशोक का शासन
एक शासक के रूप में सम्राट अशोक एक महान शासक थे उन्होंने अपनी प्रजाओं  को अपनी संतान की तरह पालते थे अशोक कहते थे "समस्त मनुष्य मेरा संतान है" दुखी लोगों को सहायता करना और सारे संप्रदाय की लोगों के हीत के लीए कम करना असहायो और मुश्किल में पड़े हुए लोगों की सहायता करना  एवं बुद्ध  रोगी  व्यक्तियों को कारागारों से मुक्त करने की आदेश देयेे थे।

सम्राट अशोक सीरिया के राजा 'एण्टियोकस द्वितीय' और कुछ अन्य यवन राजाओं का समसामयिक थे जिनका उल्लेख शिलालेख संख्या 8 में मीलता है।
शिलालेख के आनुसार  अशोक ईसापूर्व तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में राज किया था।
परंतु सम्राट अशोक की राज्यभिषेक की सही  समय का पता नहीं चलता है कहा जाता है कि सम्राट अशोक सिहासन अरोहण के 4 साल के बाद  अपना राज्यभिषेक किए थे।
शिलालेखों में सम्राट अशोक की राजत्व की प्रारंभिक समय 12वीं वर्षों तक  कोई सुनिश्चित विवरण उपलब्ध नहीं है।

शासक संगठन का प्रारूप लगभग  चंद्रगुप्त मौर्य के समय के शासन जैसा था अशोक के अभिलेखों में कई अधिकारियों का उल्लेख मिलता है। जैसे राजुकु, प्रादेशिक, युक्त आदि। इनमें अधिकांश राज्याधिकारी चंद्रगुप्त के समय में  हुआ था अशोक ने धार्मिक नीति तथा प्रजा के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर उनके राजाधर्म को अपनी कर्तव्य मानते था
एक राजा के रूप में अशोक
मानबीकता कर्तव्य को अपने शासन दंड मैं धारण करने वाले सम्राट अशोक एक महान राजा थे सम्राट अशोक की पहली वह खुद को अपनी प्रजा के पिता के रूप में और बजाऊं को अपनी संतान की तरह मानने वाले पहले राजा थे सम्राट अशोक कहते थे समस्त मनुष्य मेरे संतान है
यह बात उन की समग्र शासनकाल में और व्यक्तिगत जीवन में भी अच्छी तरह से भलीभांति दिखाई देता है सम्राट अशोक अपने शासन कार्य को एक  कर्तव्य तरह मानते थे अशोक अपनी प्रजा की हित के लिए  सुख सुविधा के लिए अनेक महान कार्य किए हैं अशोक कहते थे विश्व हित की आलवा और कोई मोहन कार्य हो नहीं सकता।

अशोक के शासनकाल में अपनी प्रजा को खुद की संतान की तरह पालन किया।
सम्राट अशोक प्रजा हीतकारी दयावान सम्राट थे उन्होंने अपने प्रजाओं के सुख सुविधा समृद्धि के लिए अनेक महान कार्य किए हैं
तक्षशिला और कलिंग पर विजय
अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष तक अशोक ने मौर्य साम्राज्य की परम्परागत नीति का ही अनुसरण किया। अशोक ने देश के अन्दर साम्राज्य का विस्तार किया किन्तु दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार की नीति अपनाई।
सम्राट अशोक नेपाल को विजिय कीया और तक्षशिला के विद्रोह का दमन किया  अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। इस बात से यह पता चलता है कि नंद वंश के पतन के बाद कॉलिंग स्वतंत्र राज्य हो गया था
साम्राज्य की सीमा
अशोक के शिलालेखों तथा स्तंभलेखों से अशोक के साम्राज्य की सीमा की ठीक जानकारी प्राप्त होती है। शिलालेखों तथा स्तंभलेखों के विवरण से ही नहीं, वरन् जहाँ से अभिलेख पाए गए हैं, उन स्थानों की स्थिति से भी सीमा निर्धारण करने में सहायता मिलती है। इन अभिलेखों में जनता के लिए राजा की घोषणाएँ थीं। अतः वे अशोक के विभिन्न प्रान्तों में आबादी के मुख्य केन्द्रों में उत्कीर्ण कराए गए। कुछ अभिलेख सीमांत स्थानों पर पाए जाते हैं। उत्तर-पश्चिम में शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा में अशोक के शिलालेख पाए गए। इसके अतिरिक्त तक्षशिला में और क़ाबुल प्रदेश में 'लमगान' में अशोक के लेख अरामाइक लिपि में मिलते हैं। एक शिलालेख में एण्टियोकस द्वितीय थियोस को पड़ोसी राजा कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि उत्तर-पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा हिन्दुकुश तक थी। कालसी, रुम्मिनदेई तथा निगाली सागर शिलालेख तथा स्तंभलेखों से सिद्ध होता है कि देहरादून और नेपाल की तराई का क्षेत्र अशोक के राज्य में था। सारनाथ तथा नेपाल की वंशावलियों के प्रमाण तथा स्मारकों से यह सिद्ध होता है कि नेपाल अशोक के साम्राज्य का एक अंग था।

एक धर्म प्रचारक के रूप में सम्राट अशोक इतिहास में  स्वतंत्र स्थान अधिकार किए हैं
कलिंग युद्ध कि भैया वाह चारों ओर जलती हुई चिता सेना के रक्त से लाल हुई दया नदी को देखकर  सम्राट अशोक की जीवन में अनेक परिवर्तन आया उन्होंने संपूर्ण रूप से युद्ध का त्याग कर दिया  बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और मानवता के कल्याण के अैर अपने संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया
इतिहास में ऐसे भी अनेक राजाओं का उदाहरण है जो अपने प्रजाओं को अपनी मनपसंद धर्म धारण करने की लिए मजबूर करते हैं लेकिन अशोक सर्व धर्म का सम्मान करते थे अशोक के बौद्ध धर्म के माध्यम से लोगों में शांति अहिंसा दया क्षमा और सामाजिक एकता लाना चाहते थे

धर्म प्रचार के लिए जो व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग किए हैं एक वास्तविक महान त्याग है
अपने से अधिक प्रिय जस्ट पुत्र महेंद्र और कन्या संघमित्रा को सहांल और ब्राह्मदेश बौद्ध धर्म प्रचार प्रसार के लिए अजीवन बुद्ध बनाकर प्रेरित किया  के लिए व्यक्तिगत करना शायद इतिहास में कहीं उदाहरण होगा।